रांची
झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एसपी कॉलेज, दुमका के रिटायर कर्मचारी फूल चंद्र ठाकुर के वेतन निर्धारण और पेंशन संशोधन को खारिज करने वाले राज्य सरकार के आदेश को मानने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति दीपक रोशन ने बहस के दौरान कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के दशकों बाद नियुक्ति को चुनौती देने के लिए राज्य की आलोचना की। इसे कानूनी रूप से अस्वीकार्य माना। न्यायालय ने राज्य को याचिकाकर्ता के वेतन संशोधन को मंजूरी देने और निर्धारित समय के भीतर उसकी पेंशन और बकाया राशि की प्रक्रिया करने का निर्देश दिया।
क्या है मामला
याचिकाकर्ता, फूल चंद्र ठाकुर, उम्र 75 वर्ष, 31 साल की सेवा के बाद 2006 में एसपी कॉलेज, दुमका से टाइपिस्ट के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्ति के बाद, ठाकुर के वेतन और पेंशन को उनकी पात्रता के बावजूद 5वें और 6वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार संशोधित नहीं की गयी। उनका वेतन अंतिम बार 1981 में चौथे वेतन आयोग के तहत संशोधित किया गया था।
ठाकुर ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसने प्रतिवादी अधिकारियों को वेतन निर्धारण के उनके अनुरोध पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था। हालाँकि, उनकी नियुक्ति के समय टाइपिस्ट के लिए स्वीकृत पद की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए, झारखंड सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 2019 में उनके दावे को फिर से खारिज कर दिया गया था।
मुख्य कानूनी पहलू
1. सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्ति की वैधता: राज्य सरकार ने 1975 में ठाकुर की टाइपिस्ट के रूप में मूल नियुक्ति पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया कि यह पद कभी स्वीकृत नहीं था। अदालत ने जांच की कि क्या कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद ऐसी चुनौती दी जा सकती है।
2. पद का समायोजन: ठाकुर की टाइपिस्ट के रूप में नियुक्ति को उनके कार्यकाल के दौरान लाइब्रेरी असिस्टेंट के पद पर समायोजित किया गया था, क्योंकि एसपी कॉलेज में टाइपिस्ट के लिए कोई स्वीकृत पद नहीं था। इस समायोजन की वैधता भी जांच के दायरे में आई।
3. वेतनमान में संशोधन में देरी: मामले में यह भी विचार किया गया कि क्या याचिकाकर्ता के वेतन निर्धारण को सेवानिवृत्ति के 13 साल बाद खारिज किया जा सकता है, खासकर तब जब उनके रोजगार के दौरान कोई आपत्ति नहीं उठाई गई थी।